क्या होता है जब अफरा-तफरी, लाशें और गलतफहमियाँ एक साथ टकराती हैं — और कोई एक शब्द तक नहीं कहता? "उफ्फ़ ये सियाप्पा" आपकेलेकर आया है एक ऐसी अनोखी ब्लैक कॉमेडी, जो न तो संवादों पर निर्भर है और न ही चिल्लाने पर — बल्कि सिर्फ़ चेहरों की भंगिमा, शरीर की भाषाऔर ए.आर. रहमान के जबरदस्त बैकग्राउंड स्कोर पर।
इस फिल्म में शारीब हाशमी, सोहम शाह, नुसरत भरूचा, नोरा फतेही, और ओमकार कपूर नजर आने वाले हैं, और निर्देशन किया है जी. अशोक ने।
केसरी लाल सिंह (सोहम शाह) एक सीधा-सादा आदमी है, जिसकी जिंदगी तब हंगामे में बदल जाती है जब उसकी पत्नी पुष्पा (नुसरत भरूचा) उसेबेवजह शक के घेरे में ले लेती है। उसे लगता है कि केसरी उनकी पड़ोसी कामिनी (नोरा फतेही) से फ्लर्ट कर रहा है। लेकिन मामला यहीं नहीं रुकता— एक गलत डिलीवर हुआ ड्रग्स का पार्सल, और फिर दो लाशें उसके घर में — और देखते ही देखते, एक शादीशुदा ज़िंदगी की तकरार, क्राइमथ्रिलर में तब्दील हो जाती है। और तभी एंट्री होती है — इंस्पेक्टर हसमुख (ओंकार कपूर) की — एक ऐसा पुलिसवाला, जिसके पास भी कई कालेराज़ छिपे हैं।
बॉलीवुड में जहां हर सीन में डायलॉग्स की बारिश होती है, वहां ये फिल्म एक दमदार, अलग और बोलती खामोशी लेकर आ रही है। उफ्फ़ येसियाप्पा सिर्फ एक फिल्म नहीं, बल्कि एक सिनेमाई एक्सपेरिमेंट है — जो साबित करता है कि कभी-कभी चुप्पी ही सबसे ज़्यादा बोलती है।
हर सीन, हर इमोशन, हर पल — सिर्फ़ चेहरे के हावभाव, कैमरा मूवमेंट और रहमान के साइलेंट लेकिन शोर मचाते संगीत से बयां होता है। बस वही हैउफ्फ़ ये सियाप्पा।
इस 5 सितंबर, तैयार हो जाइए — साइलेंस देखने, सुनने और महसूस करने के लिए।
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