मुंबई, 24 अप्रैल, (न्यूज़ हेल्पलाइन)। हाईकोर्ट की औरंगाबाद बेंच के जस्टिस विभा कंकनवाड़ी और जस्टिस संजय देशमुख ने कहा कि मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) अधिनियम के तहत तलाक की परिभाषा में तलाक के वे रूप शामिल हैं, जिनका प्रभाव तत्काल होता है, या जिन्हें बदला नहीं जा सकता है। हाईकोर्ट ने कहा कि केवल तत्काल तीन तलाक पर रोक है, तलाक-ए-अहसन पर नहीं। इस कमेंट के साथ ही कोर्ट ने जलगांव के एक शख्स और उसके माता-पिता के खिलाफ दर्ज शिकायत पर मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) अधिनियम की धारा 4 के तहत 2024 में दर्ज मामले को खारिज कर दिया। इस धारा के तहत कोई भी मुस्लिम व्यक्ति जो अपनी पत्नी को तीन तलाक देता है, जिसे तलाक-ए-बिद्दत कहा जाता है, उसे तीन साल तक की जेल की सजा दी जाएगी। यह भी कहा की, इस मामले में व्यक्ति ने अपनी पत्नी को तलाक-ए-अहसन दिया था जो सिर्फ तलाक की घोषणा होती है। तलाकनामा घोषणा के तीन महीने बाद दिया गया था। तलाक-ए-अहसन का कानूनी प्रभाव केवल 90 दिनों के बाद ही लागू हुआ। इस दौरान दंपती ने दोबारा साथ रहना शुरू नहीं किया था। यानी मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत तलाक लागू हो गया। अधिनियम के तहत तीन तलाक अपराध है। जबकि तलाक-ए-अहसन अपराध नहीं है, ऐसे में अगर व्यक्ति और उसके माता-पिता के खिलाफ केस किया जाता है तो कानून का दुरुपयोग है।
दरअसल, रिपोर्ट्स के मुताबिक तनवीर अहमद नाम के शख्स ने 2021 में शादी की थी। वह 2023 में पत्नी से अलग हो गए। तनवीर ने गवाहों की मौजूदगी में दिसंबर 2023 में तलाक-ए-अहसन का ऐलान किया था। पत्नी ने जलगांव के भुसावल बाजार पेठ पुलिस स्टेशन में एक FIR दर्ज कराई। सने यह भी आरोप लगाया कि उसके ससुराल वाले इस फैसले का हिस्सा थे और उन्हें भी समान रूप से जिम्मेदार ठहराया जाना चाहिए। हालांकि तनवीर ने अपनी याचिका में दावा किया कि अधिनियम के प्रावधानों के तहत तलाक का यह तरीका दंडनीय नहीं है। कोर्ट ने कहा कि दर्ज FIR तलाक के मुद्दे से जुड़ी है, इसलिए यह केवल पति के खिलाफ ही सीमित है और ससुराल वालों को इसमें शामिल नहीं किया जा सकता है। अगर मामला जारी रखा जाता है तो यह कानून का दुरुपयोग होगा।