बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में नवादा जिले की हिसुआ विधानसभा सीट पर राजनीतिक गलियारों में बड़े उलटफेर की चर्चा जोरों पर है। इस सीट पर चुनावी मैदान में दो दिग्गज राजनीतिक परिवार की बहुएं आमने-सामने आ गई हैं—एक कांग्रेस के टिकट पर मौजूदा विधायक के रूप में, तो दूसरी भाजपा प्रत्याशी के लिए एनडीए का प्रचार अभियान संभालते हुए। यह 'जेठानी बनाम देवरानी' की सियासी लड़ाई ने न केवल नवादा की राजनीति को दिलचस्प बना दिया है, बल्कि पूरे बिहार में पारिवारिक और राजनीतिक वर्चस्व की इस जंग ने सुर्खियां बटोरी हैं।
आदित्य सिंह परिवार का सियासी द्वंद्व
यह पूरा घटनाक्रम हिसुआ की राजनीति के ध्रुव रहे, दिवंगत पूर्व राज्यमंत्री आदित्य सिंह के राजनीतिक विरासत से जुड़ा है। आदित्य सिंह लगातार छह बार इस सीट से विधायक रहे थे, और उनके निधन के बाद भी परिवार का प्रभाव कायम रहा। मैदान में एक तरफ उनकी बहू और वर्तमान विधायक नीतू कुमारी हैं, जो कांग्रेस पार्टी के टिकट पर महागठबंधन की प्रत्याशी के रूप में अपनी सीट बचाने के लिए ताल ठोक रही हैं। वहीं, दूसरी तरफ, उनकी देवरानी और पूर्व कांग्रेस जिलाध्यक्ष आभा देवी हैं। आभा देवी सीधे चुनाव नहीं लड़ रही हैं, लेकिन वह भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के उम्मीदवार अनिल सिंह के लिए एनडीए गठबंधन का प्रचार कर रही हैं। यह समीकरण इस चुनाव को दो बहुओं के बीच अप्रत्यक्ष लेकिन तीखे कैंपेन वॉर में बदल रहा है।
घर का विवाद, चुनावी मैदान तक
राजनीतिक विश्लेषकों और स्थानीय लोगों के अनुसार, आदित्य सिंह के घर का यह आपसी विवाद अब चुनावी मैदान के सार्वजनिक मंच पर सतह पर आ गया है। इस पारिवारिक कलह ने 2025 के चुनाव को एक भावनात्मक मोड़ दे दिया है।
यह विडंबना है कि 2020 के पिछले विधानसभा चुनाव में देवरानी आभा देवी ने अपनी जेठानी नीतू कुमारी के समर्थन में जमकर प्रचार किया था। उस समय, यह माना गया था कि परिवार के भीतर के सभी मतभेद सुलझ गए हैं और वे एकजुट हो गए हैं। लेकिन पांच साल बाद, 2025 के चुनाव में, दोनों पुत्रवधु एक-दूसरे के राजनीतिक विरोध में खड़ी हैं। नीतू कुमारी सीधे जीत के लिए लड़ रही हैं, जबकि आभा देवी अपनी पूरी ताकत विरोधी खेमे के उम्मीदवार को जिताने में लगा रही हैं। हिसुआ के मतदाता अब हैरान हैं कि इस 'देवरानी-जेठानी कैंपेन वॉर' का अंतिम परिणाम क्या होगा और इस हाई-प्रोफाइल सीट पर कौन विजय पताका फहराएगा।
बिहार में 'चाचा Vs भतीजा' की दूसरी बड़ी जंग
एक ओर नवादा में पारिवारिक विरासत की जंग चल रही है, वहीं बिहार की राजनीति में एक और 'चाचा बनाम भतीजा' का हाई-वोल्टेज टकराव लोगों के बीच चर्चा का विषय बना हुआ है। यह जंग दिवंगत रामविलास पासवान की राजनीतिक विरासत और पासवान वोट बैंक पर नियंत्रण स्थापित करने की है, जिसमें पूर्व केंद्रीय मंत्री पशुपति पारस (चाचा) और केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान (भतीजा) आमने-सामने हैं। बिहार में पासवान जाति की आबादी लगभग 69.43 लाख है, जो राज्य की कुल आबादी का लगभग 5.31% हिस्सा है। यह महत्वपूर्ण वोट बैंक कई विधानसभा सीटों के चुनावी नतीजों को प्रभावित करने की क्षमता रखता है।
यही कारण है कि दोनों नेता इस निर्णायक वोट बैंक पर अपनी पकड़ मजबूत करने के लिए पूरा जोर लगा रहे हैं। दोनों नेताओं की पार्टियां, राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी (रालोजपा) (पशुपति पारस का गुट) और लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) (चिराग पासवान का गुट), गठबंधन के बावजूद कई सीटों पर अप्रत्यक्ष रूप से एक-दूसरे के खिलाफ खड़ी हैं, जिससे पासवान समुदाय के वोटों का विभाजन होने की आशंका है।
बिहार चुनाव 2025: पारिवारिक मुकाबले बने मुख्य आकर्षण
बिहार का वर्तमान विधानसभा चुनाव सिर्फ पार्टियों या विचारधाराओं के बीच का मुकाबला नहीं रह गया है, बल्कि यह पारिवारिक वर्चस्व की लड़ाई, राजनीतिक विरासत पर कब्जे की जंग और व्यक्तिगत संबंधों के तनाव का सार्वजनिक प्रदर्शन बन गया है। नवादा की हिसुआ सीट पर जेठानी बनाम देवरानी और पासवान वोट बैंक को लेकर चाचा बनाम भतीजा का टकराव स्पष्ट करता है कि बिहार की राजनीति में पारिवारिक समीकरण और व्यक्तिगत संबंध कितने मायने रखते हैं।
इन पारिवारिक मुकाबलों ने चुनाव प्रचार को एक नया रंग दे दिया है, जहां व्यक्तिगत रंजिशें और रिश्ते-नाते अब बड़े राजनीतिक दांव में बदल गए हैं। हिसुआ के मतदाता इस बात को उत्सुकता से देख रहे हैं कि दिवंगत आदित्य सिंह की राजनीतिक विरासत अंततः किस बहू के हाथ में जाती है। वहीं, पशुपति पारस और चिराग पासवान के बीच की जंग तय करेगी कि पासवान समुदाय का भविष्य किस नेतृत्व के साथ जुड़ता है। इन दोनों 'पारिवारिक जंगों' के परिणाम न सिर्फ इन सीटों के भाग्य का फैसला करेंगे, बल्कि बिहार की आगामी राजनीति की दिशा भी तय करेंगे।