मध्य पूर्व में स्थित ईरान से युद्ध करना भले ही सुनने में आसान लगे, लेकिन इसे जीतना उतना ही कठिन और जटिल है। इसके पीछे कई रणनीतिक, भौगोलिक और सैन्य कारण हैं जो इसे एक चुनौतीपूर्ण दुश्मन बनाते हैं। यह कोई सीधी टक्कर नहीं है, बल्कि इसमें परदे के पीछे चलने वाली जटिल राजनीति, प्रॉक्सी युद्ध और भौगोलिक बाधाएं शामिल हैं। आइए विस्तार से जानते हैं कि क्यों ईरान के खिलाफ युद्ध आसान नहीं।
ईरान की सैन्य रणनीति: प्रॉक्सी युद्ध
ईरान अपनी सैन्य ताकत को सीधे युद्ध में लगाकर भिड़ता नहीं, बल्कि अपने प्रॉक्सी ग्रुप्स के जरिए युद्ध करता है। इसका मतलब है कि वह अपने समर्थित गुटों और समूहों को इराक, सीरिया, लेबनान, यमन जैसे देशों में सक्रिय रखता है। ये प्रॉक्सी ग्रुप्स उसकी सीमाओं से दूर रहकर विरोधी देशों या बलों के खिलाफ लड़ाई लड़ते हैं। इस रणनीति से ईरान सीधे युद्ध में फंसे बिना अपने प्रभाव को फैलाता है और दुश्मन को परदे के पीछे नुकसान पहुंचाता है।
प्रॉक्सी युद्ध में ईरान के इस रणनीति ने इसे सैन्य रूप से बहुत मजबूत बना दिया है क्योंकि यह प्रत्यक्ष टकराव से बचते हुए विरोधियों के लिए जटिल परिस्थितियां पैदा करता है। इसलिए, अगर कोई देश ईरान से सीधे टकराव करता भी है, तो वह उसकी प्रॉक्सी लड़ाकों से भी जूझता है, जो अलग-अलग भौगोलिक और राजनीतिक क्षेत्रों में सक्रिय होते हैं।
भौगोलिक स्थिति: चुनौतीपूर्ण इलाके
ईरान की भौगोलिक स्थिति भी उसकी सुरक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। ईरान ब्रिटेन से लगभग सात गुना बड़ा देश है, जिसकी सीमा और प्राकृतिक बाधाएं इसे दुश्मनों के लिए आक्रामकता को मुश्किल बनाती हैं।
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जैग्रोस पर्वत माला: देश के पश्चिमी हिस्से में फैली यह पर्वत श्रृंखला ईरान को प्राकृतिक सुरक्षा कवच देती है। यह पहाड़ ऊंचे और खड़े होने के कारण सैन्य अभियानों के लिए दुश्मन के लिए चुनौतीपूर्ण इलाका बन जाते हैं। यहां से गुजरना और लड़ाई लड़ना आसान नहीं।
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दक्षिणी नुकीले पहाड़: ईरान के दक्षिणी हिस्से में पहाड़ों का ऐसा इलाका है, जो किसी भी सैन्य अभियान के लिए दुश्मनों को भारी परेशानी में डाल देता है। यहां लैंडिंग करना और आगे बढ़ना मुश्किल होता है, जो आक्रमणकारियों की गति को धीमा कर देता है।
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दो विशाल रेगिस्तान: देश के मध्य में फैले दाश्त-ए-कवीर और दाश्त-ए-लूत रेगिस्तान, जो गर्मी और कठोर जलवायु के कारण नो गो जोन (अप्रत्यक्ष क्षेत्रों) में आते हैं। इन रेगिस्तानों को पार करना तो दूर की बात, यहां टिक पाना भी लगभग असंभव है। ये रेगिस्तान सैन्य अभियानों में गंभीर बाधा उत्पन्न करते हैं, खासकर भारी हथियारों और सैनिकों के लिए।
इस भौगोलिक विविधता की वजह से कोई भी सैन्य अभियान न केवल कठिन हो जाता है, बल्कि यह लड़ाई को लंबी और खून-खराबे वाली प्रक्रिया बना देता है।
ईरान की समुद्री स्थिति और होर्मुज जलसंधि
ईरान की समुद्री स्थिति और उसके नियंत्रण वाले क्षेत्र, खासकर होर्मुज जलसंधि, पूरी दुनिया के लिए रणनीतिक रूप से अत्यंत महत्वपूर्ण है। होर्मुज जलसंधि फारस की खाड़ी और अरब सागर को जोड़ती है, और इसके माध्यम से दुनिया का लगभग 20% कच्चा तेल गुजरता है।
अगर ईरान इस जलसंधि को बंद करता है या नियंत्रित करता है, तो वैश्विक तेल और गैस की आपूर्ति पर बड़ा संकट आ सकता है। यह क्षेत्र न केवल ईरान के लिए बल्कि विश्व के ऊर्जा बाजार के लिए भी संवेदनशील है।
इसके अतिरिक्त, ईरान के पास दुनिया के चौथे सबसे बड़े तेल भंडार और प्राकृतिक गैस का दूसरा सबसे बड़ा भंडार है। इस संसाधन संपन्न देश को युद्ध में हराना सिर्फ सैन्य ताकत से नहीं, बल्कि ऊर्जा बाजार और वैश्विक राजनीति के संदर्भ में भी बहुत चुनौतीपूर्ण है।
निष्कर्ष: युद्ध जितना आसान नहीं जितना सोचा जाता है
ईरान से सीधे युद्ध करना न केवल सैन्य रूप से चुनौतीपूर्ण है, बल्कि उसकी भौगोलिक, राजनीतिक और आर्थिक स्थिति इसे एक जटिल दुश्मन बनाती है।
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उसका प्रॉक्सी युद्ध नीति उसे सीधे युद्ध से बचाती है और विरोधियों के लिए अप्रत्यक्ष रूप से खतरनाक बनाती है।
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कठिन भूगोल, जैसे पर्वत और रेगिस्तान, आक्रमणकारियों को लगातार संघर्ष में उलझा कर रखता है।
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समुद्री रणनीति और ऊर्जा भंडार के कारण वैश्विक हितों का टकराव युद्ध को और भी पेचीदा बनाता है।
इन कारणों से, ईरान को हराना केवल सेना की ताकत से नहीं, बल्कि दीर्घकालिक रणनीति, कूटनीति और वैश्विक समर्थन से संभव होगा। इसलिए मध्य पूर्व में ईरान के खिलाफ युद्ध को आसान समझना एक बड़ा भूल होगा।