विदेश मंत्री सुब्रह्मण्यम जयशंकर पांच वर्षों के लंबे अंतराल के बाद चीन के लिए दो दिवसीय आधिकारिक दौरे पर बीजिंग पहुंचे हैं। यह यात्रा खास तौर पर इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि 2020 में गलवान घाटी में भारत और चीन की सेना के बीच हुई हिंसक झड़प के बाद यह पहली बार है जब भारत के विदेश मंत्री चीन की धरती पर कदम रख रहे हैं। इस दौरे के दौरान जयशंकर ने चीन के उपराष्ट्रपति हान झेंग से मुलाकात की और दोनों पक्षों ने द्विपक्षीय संबंधों को "लगातार सामान्य करने" की आवश्यकता पर जोर दिया।
जयशंकर की चीन यात्रा का राजनीतिक और कूटनीतिक महत्व काफी व्यापक है। गलवान की घटना ने भारत-चीन संबंधों को गहरा आघात पहुंचाया था, और अब दोनों देशों के बीच तनाव को कम करने के प्रयास जारी हैं। इस संदर्भ में, जयशंकर का यह दौरा संबंधों को पुनः स्थिर करने और द्विपक्षीय संवाद को सक्रिय करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है। उन्होंने अपनी बातचीत में कैलाश मानसरोवर यात्रा की फिर से शुरुआत को लेकर भी सकारात्मक टिप्पणी की, जो भारत में व्यापक रूप से सराही जा रही है। यह यात्रा सांस्कृतिक और धार्मिक संपर्कों के पुनरारंभ का संकेत भी है।
द्विपक्षीय बैठकें और बहुपक्षीय मंचों पर चर्चा
जयशंकर अपने दौरे के दौरान चीन के विदेश मंत्री वांग यी के साथ भी मुलाकात करेंगे, जिसमें दोनों देशों के बीच कई अहम मुद्दों पर बातचीत होगी। इसके अलावा, वे 14 और 15 जुलाई को तियानजिन में शंघाई सहयोग संगठन (SCO) की विदेश मंत्रियों की परिषद की बैठक में भी हिस्सा लेंगे। यह संगठन चीन के नेतृत्व वाला एक बहुपक्षीय मंच है, जिसमें भारत, पाकिस्तान समेत कुल 9 स्थायी सदस्य देश शामिल हैं।
इस बैठक में क्षेत्रीय सुरक्षा, आतंकवाद विरोधी सहयोग, व्यापार और आर्थिक मामलों जैसे विषय प्रमुख रूप से चर्चा के केंद्र में रहेंगे। सूत्रों के अनुसार, बैठक में भारत-पाकिस्तान तनाव, भारत को दुर्लभ मृदा की आपूर्ति, दलाई लामा के उत्तराधिकार, और दोनों देशों के बीच सीधी उड़ानों की बहाली जैसे संवेदनशील मुद्दों पर भी विचार-विमर्श होने की संभावना है।
2023 में पीएम मोदी और शी जिनपिंग की बैठक
जयशंकर के इस दौरे को पहले भी भारत-चीन संबंधों में महत्वपूर्ण संवाद का हिस्सा माना जा रहा है। अक्टूबर 2023 में रूस के कजान शहर में आयोजित ब्रिक्स शिखर सम्मेलन के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच हुई उच्चस्तरीय बैठक ने दोनों देशों के बीच रिश्तों में सुधार की उम्मीद जगाई थी। इस बैठक में पीएम मोदी ने स्पष्ट किया था कि भारत-चीन संबंध तभी स्थिर रह सकते हैं जब वे पारस्परिक विश्वास, सम्मान और संवेदनशीलता पर आधारित हों।
राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार और रक्षा मंत्री के दौरे
जयशंकर के दौरे से पहले ही भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और विदेश सचिव विक्रम मिस्री ने बीजिंग का दौरा किया था। इन दौरे के दौरान भारत ने चीन के वरिष्ठ नेताओं के साथ आतंकवाद, सीमा सुरक्षा, और क्षेत्रीय स्थिरता जैसे मुद्दों पर गहन चर्चा की थी। विशेष रूप से, अजीत डोभाल ने शंघाई सहयोग संगठन की सुरक्षा परिषद की 20वीं बैठक में आतंकवादी संगठनों के खतरे पर चिंता जताई थी और भारत द्वारा ऑपरेशन सिंदूर जैसी सैन्य कार्रवाइयों का हवाला दिया था।
इन बैठकों में चीन के विदेश मंत्री वांग यी के साथ भी गंभीर बातचीत हुई, जिसमें द्विपक्षीय संबंधों के विकास, लोगों के बीच संपर्क बढ़ाने, और सीमा विवाद के शांतिपूर्ण समाधान की बात कही गई।
निष्कर्ष
विदेश मंत्री सुब्रह्मण्यम जयशंकर का यह दो दिवसीय चीन दौरा भारत-चीन संबंधों में सुधार की दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल है। गलवान की घटना के बाद पहली बार ऐसे उच्चस्तरीय संवाद से दोनों देशों के बीच पारस्परिक विश्वास बढ़ाने की उम्मीद जगी है। कैलाश मानसरोवर यात्रा का पुनः शुरू होना सांस्कृतिक संबंधों की बहाली का सकारात्मक संकेत है।
शंघाई सहयोग संगठन के मंच पर भी भारत अपनी सुरक्षा और आर्थिक हितों को मजबूती से आगे बढ़ाने की कोशिश कर रहा है। साथ ही, आतंकवाद के खिलाफ समन्वित लड़ाई में सहयोग को बढ़ावा देने की पहल की जा रही है।
भारत और चीन के बीच संवाद को बढ़ावा देना न केवल दोनों देशों के लिए, बल्कि पूरे एशिया-प्रशांत क्षेत्र के लिए भी शांति और समृद्धि का आधार बनेगा। ऐसे कूटनीतिक प्रयासों से उम्मीद है कि दोनों देशों के बीच तनाव घटेगा और क्षेत्रीय स्थिरता बनी रहेगी।