भारतीय अंतरिक्ष विज्ञान और रक्षा क्षेत्र के लिए यह एक ऐतिहासिक क्षण है। भारतीय वायु सेना (IAF) के ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला, जिन्हें ISRO के गगनयान मिशन के लिए ‘प्राइम’ एस्ट्रोनॉट के रूप में चयनित किया गया है, अब मई 2025 में नासा और एक्सिओम स्पेस द्वारा संचालित Axiom Mission 4 के तहत अंतरिक्ष की उड़ान भरने जा रहे हैं।
इस मिशन की कमान नासा की पूर्व अंतरिक्ष यात्री और Axiom Space की मानव अंतरिक्ष उड़ान डायरेक्टर पैगी व्हिटसन के पास होगी। लेकिन भारत के लिए गौरव की बात केवल शुभांशु शुक्ला की भागीदारी नहीं है – इसरो इस मिशन के साथ 'वॉटर बियर' (टार्डिग्रेड्स) को भी अंतरिक्ष में भेज रहा है।
कौन हैं शुभांशु शुक्ला?
IAF में ग्रुप कैप्टन के पद पर कार्यरत शुभांशु शुक्ला, भारत के अत्याधुनिक फाइटर पायलट्स में से एक हैं। उन्होंने अंतरिक्ष मिशन के लिए कठोर प्रशिक्षण प्राप्त किया है और अब वे अंतरराष्ट्रीय मिशन का हिस्सा बनकर भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) के लिए एक नया मील का पत्थर स्थापित करने जा रहे हैं।
Axiom-4 मिशन के तहत वह 14 दिन अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (ISS) पर बिताएंगे, जहां वे कई वैज्ञानिक प्रयोगों में हिस्सा लेंगे।
क्या हैं वॉटर बियर (टार्डिग्रेड्स)?
वॉटर बियर या टार्डिग्रेड्स, सूक्ष्म जल-जीव हैं जो अपनी अतिविकट परिस्थितियों में जीवित रहने की असाधारण क्षमता के लिए प्रसिद्ध हैं।
इनके आठ पैर होते हैं और हर पैर के अंत में नन्हे पंजे होते हैं। इनका आकार आमतौर पर 0.3 मिमी से 0.5 मिमी होता है और इन्हें माइक्रोस्कोप के बिना नहीं देखा जा सकता।
इन्हें पहली बार 1773 में जर्मन प्राणी विज्ञानी जोहान ऑगस्ट एफ्रैम गोएज ने खोजा था।
टार्डिग्रेड्स धरती पर लगभग हर वातावरण में पाए जाते हैं – जैसे काई, मिट्टी, समुद्र, ध्रुवीय क्षेत्र, यहां तक कि गर्म झरनों में भी। इनका शरीर एक मजबूत क्यूटिकल से ढका होता है और ये अत्यंत धीमी गति से चलते हैं, इसलिए इन्हें ‘वॉटर बियर’ कहा जाता है।
अंतरिक्ष में क्यों भेजे जा रहे हैं वॉटर बियर?
ISRO के वैज्ञानिकों द्वारा डिजाइन किए गए प्रयोग ‘Voyager Tardigrades Experiment’ के तहत, वॉटर बियर को निष्क्रिय अवस्था (cryptobiosis) में अंतरिक्ष भेजा जाएगा। शुभांशु शुक्ला इस प्रयोग को ISS पर संचालित करेंगे।
इस प्रयोग के मुख्य उद्देश्य हैं:
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टार्डिग्रेड्स का अंतरिक्ष में पुनर्जीवन (revival)
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उनके द्वारा अंडे देने और अंडों के फूटने की प्रक्रिया का अध्ययन
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पृथ्वी पर रह रहे टार्डिग्रेड्स की तुलना में अंतरिक्ष में गए जीवों के जीन एक्सप्रेशन पैटर्न का विश्लेषण
इस प्रयोग से वैज्ञानिक यह जानने की कोशिश करेंगे कि ये जीव कैसे अत्यधिक विकिरण, वैक्यूम और अत्यधिक तापमान जैसी स्थितियों में अपने डीएनए की मरम्मत और सुरक्षा करते हैं।
महत्व क्यों है इस प्रयोग का?
अंतरिक्ष की परिस्थितियाँ धरती से बिलकुल अलग होती हैं – वहां गुरुत्वाकर्षण नहीं होता, विकिरण की मात्रा बहुत अधिक होती है और तापमान अत्यधिक बदलते हैं। ऐसे में अगर कोई जीव वहां जीवित रह सकता है, तो उसकी बायोलॉजिकल विशेषताएं इंसानों के लिए भी लाभकारी हो सकती हैं।
वॉयेजर टार्डिग्रेड्स एक्सपेरिमेंट से वैज्ञानिकों को दीर्घकालिक अंतरिक्ष यात्रा, अंतरिक्ष में जीवन की संभावनाएं और मानव शरीर की संभावित जैविक रक्षा प्रणाली के बारे में अहम जानकारियाँ मिल सकती हैं।
टार्डिग्रेड्स सस्पेंडेड एनीमेशन (suspended animation) की स्थिति में जा सकते हैं, यानी वे अपने शरीर की सारी गतिविधियाँ अस्थायी रूप से रोक सकते हैं। यह स्थिति भविष्य में अंतरिक्ष मिशनों के दौरान जैविक सामग्रियों या यहां तक कि मनुष्यों को संरक्षित करने में उपयोगी हो सकती है।
गगनयान मिशन के लिए नई दिशा
इस प्रयोग का सीधा संबंध भारत के गगनयान मिशन से भी है। ISRO इन प्रयोगों से जो डेटा प्राप्त करेगा, वह भविष्य में मानव अंतरिक्ष यात्रा की योजना बनाने, लॉन्ग-ड्यूरेशन मिशन की तैयारी और जीवन समर्थन प्रणालियों के विकास में सहायक होगा।
निष्कर्ष: भारत की अंतरिक्ष यात्रा का अगला कदम
IAF के ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला का Axiom-4 मिशन में शामिल होना भारत के लिए अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष सहयोग का नया द्वार खोलता है। साथ ही, वॉटर बियर जैसे जीवन रूपों का अंतरिक्ष में अध्ययन दर्शाता है कि भारत अब अंतरिक्ष विज्ञान में केवल भागीदार नहीं, बल्कि वैज्ञानिक प्रयोगों में अग्रणी भूमिका निभा रहा है।
इस मिशन से मिलने वाला ज्ञान केवल वैज्ञानिक समुदाय ही नहीं, बल्कि आने वाली पीढ़ियों को भी अंतरिक्ष के रहस्यों को समझने में मदद करेगा।