मुंबई, 23 जुलाई, (न्यूज़ हेल्पलाइन)। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) प्रमुख मोहन भागवत ने पाठ्यक्रमों में बदलाव का समर्थन करते हुए कहा है कि भारत को उसकी वास्तविकता के अनुरूप समझने और प्रस्तुत करने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि वर्तमान में जो इतिहास पढ़ाया जा रहा है, वह पूरी तरह पश्चिमी नजरिए से लिखा गया है, जिसमें भारत का कोई अस्तित्व नहीं दिखाई देता। उन्होंने कहा कि विश्व मानचित्र पर भारत भले मौजूद हो, लेकिन पश्चिमी सोच में उसकी कोई जगह नहीं है। उनकी पुस्तकों में चीन और जापान को स्थान मिला है, पर भारत को नजरअंदाज किया गया है।
दिल्ली में इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय (IGNOU) और अखिल भारतीय अणुव्रत न्यास के एक कार्यक्रम में बोलते हुए संघ प्रमुख ने कहा कि पहले विश्व युद्ध के बाद शांति की बातें की गईं, किताबें लिखी गईं और राष्ट्र संघ की स्थापना हुई, लेकिन दूसरा विश्व युद्ध फिर भी हुआ। बाद में संयुक्त राष्ट्र बना, फिर भी दुनिया आज आशंकित है कि कहीं तीसरा विश्व युद्ध न हो जाए। उन्होंने कहा कि भौतिकवाद की बढ़ती प्रवृत्ति के कारण आज दुनिया में अशांति, असंतोष और संघर्ष बढ़ते जा रहे हैं। पिछले दो हजार वर्षों से पश्चिमी विचारधाराओं के आधार पर इंसान को सुखी और संतुष्ट बनाने की कोशिशें की जाती रहीं, लेकिन ये प्रयास असफल साबित हुए। अब दुनिया भारत की ओर आशा भरी निगाहों से देख रही है।
मोहन भागवत ने कहा कि विज्ञान और आर्थिक प्रगति ने भले ही भौतिक सुविधाएं दी हों, लेकिन इससे इंसान का दुख कम नहीं हुआ है। विलासिता की वस्तुएं आई हैं, पर मानसिक तनाव और पीड़ा भी बढ़ी है। गरीब और अमीर के बीच की दूरी और अधिक चौड़ी हो गई है। उन्होंने भारतीयता को केवल नागरिकता या भौगोलिक पहचान से परे बताते हुए कहा कि यह एक जीवन दृष्टिकोण है, जो धर्म आधारित होता है और धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष—इन चार पुरुषार्थों को जीवन का आधार मानता है। इसमें मोक्ष को अंतिम लक्ष्य माना गया है, जो संपूर्ण कल्याण की भावना से जुड़ा है। भागवत ने कहा कि धर्म आधारित इस जीवनदृष्टि के चलते भारत कभी दुनिया का सबसे समृद्ध राष्ट्र था। आज भी दुनिया भारत से यह अपेक्षा रखती है कि वह उसे दिशा दिखाएगा। उन्होंने कहा कि हमें इस जिम्मेदारी को समझते हुए खुद को और अपने राष्ट्र को तैयार करना होगा और इसकी शुरुआत स्वयं के जीवन और परिवार से करनी चाहिए। संघ प्रमुख ने लोगों से आग्रह किया कि वे आत्मचिंतन करें कि क्या वे अपने जीवन में भारतीय दृष्टिकोण को अपनाते हैं या नहीं। उन्होंने सुधार और बदलाव के लिए तत्पर रहने की आवश्यकता पर जोर दिया।